Feminism and Folklore 2022/List of Articles
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LGBT film festival SPARQL query https://www.wikidata.org/wiki/User:Misc/Listes/FestivalCinemaLGBT https://en.wikipedia.org/wiki/Sexuality_and_gender_identity-based_cultures
Folktales, folk tales collectors, myths (concerning women or produced by women)Edit
स्त्री विमर्श ंऔर लोक गाथा बहादुर कलारिन
स्त्री विमर्श और महिला सशक्तिकरण को लेकर शहरी समाज और साहित्य में जो जागरुकता दिखाई पडती है उसका उत्स लोक मे है। लोक में ऐसी बहुत सी कहानियॉं हैं जिनमे स्त्री अपने संपूर्ण रुप में पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी कमियों और खूबियों के साथ दिखाई देती है।ऐसी ही एक लोककथा है छत्तीसगढ की, जिसे हबीब तनवीर जी अपने नाटक के माध्यम से दुनिया के सामने लेकर आए ।स्त्रियों के लिए जिस स्वतंत्रता और समानता की मांग हम सदियों से करते रहे हैं वह लोक में विशेषकर छत्तीसगढ में बडी सरलता से स्त्रियों ने बहुत पहले ही हासिल कर लिया था। आज भी अन्य राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ में लिंग अनुपात बेहतर स्थिति में है,यहॉ परदा प्रथा ,दहेज प्रथा जैसी कुप्रथाएं कभी नहीं रही ,पुर्नविवाह वो भी स्त्री की पसंद या अनुमति से होते रहे हैं।ऑनर कीलिंग जैसी सामाजिक विद्रुपताएं यहॉं न के बराबर रहीे हैं। यहॉ स्त्री अस्मिता पुस्तकों में ही नहीं यथार्थ में भी महत्वपूर्ण रही है।यहॉं स्त्री को सामाजिक,मानसिक और दैहिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई है। इन्हीं सब बिंदुओं के आधार पर हम बहादुर कलारिन की समीक्षा करेंगे साथ ही उसका मनोवैज्ञानिक पक्ष भी देखेंगंे। बहादुर कलारिन की कहानी वास्तव में एक लोककथा है जो छत्तीसगढ़ में प्रसिध्द है। छत्तीसगढ़ के जिला दुर्ग तहसील बालोद में तीन गंाव है नवागंाव, सोररगढ और चिरचारी। ये तीनों गांव पास पास आबाद हैं। यहीं पर कलार अर्थात शराब बेचने वाली जाति की एक महिला बहादुर रहती थी, उसकी शराब प्रसिध्द थी और इसी व्यवसाय से वह इतनी समृध्द हो गई थी कि सोने की मचौली पर बैठकर शराब बेचती थी। आसपास के देहातों के अलावा दूर दूर के इलाकों से लोग शराब पीने की उसकी दुकान में आते थे।
यहंा की पथरीली जमीन में चारो तरफ नाली जैसी गहरी लकीरे है और अनगिनत गोल-गोल एक आकार के गडढे बने हुए हैं। कहते है कि ये नालियों जैसे निशान उन बैलगाड़ियों के पहियों से बने हैं जिन पर बैठकर लोग दूर दूर से बहादुर की दुकान पर शराब पीने आते थे। वैसे ही बराबर गोलाई वाले सूराख ओखलियां थीं जिन पर बहादुर की बहूएं धान कूटती थी। बहादूर ने गंगरेल के राजा से गंधर्वविवाह किया था। राजा और बहादूर का प्रेमसंबंध व प्रेमविवाह विश्वास पर आधारित था। बहादुर का पालन पोषण उसके बडे़ पिताजी ने किया था और वह अपने बडे़ पिता के साथ अकेले ही रहती थी। राजा ने बहादुर से विवाह किया उसके साथ तीन माह रहा और वापस अपने राज्य में गंगरेल चला गया, यह कहकर कि वह फिर लौटेगा। बहादुर उसका इंतजार करती रही । उसके बड़े पिता का निधन हो गया और उसकी एक संतान हुई जिसका नाम था छछान छाडू। बहादुर को उसके पिता का व्यवसाय संभालना पडा उसकी शराब बहुत प्रसिध्द हो गई। लोग शराब पीने आते और बहादुर के सौदर्य पर मोहित होकर उससे विवाह का प्रस्ताव करते किंतु बहादूर कलारिन ने राजा के बाद किसी भी पुरूष को सहमति नही दी। उसने केवल छछान की परवरिश में अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया। वह छछान को अपने हाथ से खाना खिलाती उसे अपने पास सुलाती और उसकी खुशी का हर काम करती। छछान इस अत्यधिक लाड़ दुलार से बिगड़ गया, धन की अधिकता ने उसे सबकुछ पाने की ख्वाहिश और सही गलत का भेद समझने में असमर्थ बना दिया। उसकी अकड़ से लोग परेशान थे। कुछ लोग चिढकर उसे उसके पिता के नाम से गालियॉं देते उस पर वह बहादुर से अपने पिता का नाम पूछता पर बहादुर केवल इतना बताती कि तेरा पिता राजा है उस पर गर्व कर शर्मिंदा मत हो। छछान को यह प्रश्न परेशान करता कि उसका पिता कौन है और क्यू वह सोलह वर्षो तक उससे एक भी बार मिलने नहीं आया। एक बार गंगरेल का राजा बहादुर के गंाव आया व कुछ खेत आदि खरीदने लगा। राजा की पत्नी से दो पुत्र और एक पुत्री थी। बहादुर के पास उसके पुत्र जब शराब पीने आए तो उसे पता चला पर बहादुर ने उन्हे प्यार किया और बिना कुछ बताए रोते हुए राजा का हालचाल पूछने लगी। वह राजा की जिम्मेदारियों और मजबूरियों को समझती थी। किंतु छछान राजा से नफरत करता था। वह राजा का विरोध करने लगा। एक दिन जब उसका सामना राजा से हुआ राजा से उसने लडाई का आग्रह किया। राजा ने इंकार कर दिया, जब राजा को छछान का परिचय मिला उसने कहा कि तु मेरा ही खून है इसलिए तुझमे इतना जोश है किंतु छछान यह सुनकर भी लड़ने का आग्रह करता रहा। उसने कहा लड़ाई करों अन्यथा मेरे घर चलो। राजा ने जब कहा वह बाद में आएगा छछान जिद में आकर राजा से लड़ने लगा और उसे मार दिया। छछान की मंाग पर बहादुर ने उसकी पसंद की एक लड़की से उसका विवाह करवा दिया। अपनी बहु से उसने कहा कि तुम छछान का ध्यान रखना और गृहस्थी संभालना उसे मूसल देकर बहादुर ने रोज धान कूटने को कहा। छछान पहली ही रात अपनी पत्नि को छोडकर बहादुर के पास आ गया। बहादुर के बहुत समझाने पर वह अपनी पत्नि के पास गया। वह अपने इस विवाह से प्रसन्न ना था। बैगा के कहने पर बहादुर ने छछान का दूसरा विवाह करा दिया। छछान को वह औरत भी पसंद न थी। छछान की जिद और इच्छा पर बहादुर ने छछान की एक सौ छब्बीस शादियां कराई। अंतिम शादी तक पूरा गंाव छछान का विरोधी हो चुका था क्यूकि उनकी बेटियां छछान के साथ खुश न थी। सबने इस शादी का विरोध किया किंतु बहादुर के धन और रौबदार व्यक्तित्व के आगे कोई कुछ न कर सका व छछान की 126 वीं शादी भी हो गई। छछान इस शादी से भी खुश न था। जब बहादुर ने उससे उसका कारण पूछा तो वह आश्चर्यचकित रह गई कि दछान अपनी मंा को ही चाहता है और उसे वासना की दृष्टि से देखता है। वह कहता है ‘‘अनेक औरत मै बिहाएव फेर दुनियाभर में तोर असन औरत नई देखेंव। तोर से दूर नहीं रह सकव।’’ यह सुनकर बहादुर आश्चर्य में पड़ गई और उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने फैसला कर लिया कि अब छछान को खत्म कर देना ही बेहतर है। उसने बडे़ प्यार से मिर्च मसाले वाला खाना उसके लिए तैयार किया और अपने हाथों से खिलाया। बहुओं से कह दिया कि आज कोई पानी ना भरे। पैसे वाली औरत होने के कारण गंाववालों में उसकी बहुत साख थी ,इज्जत भी थी। बहादुर ने उसको कहलवा दिया कि छछान अगर पानी मंागने आए तो किसी घर से उसे पानी नहीं मिलना चाहिए। गंाव वाले वैसे भी लडके से बदगुमान थे, उन्हे बदला लेने का अवसर मिला वो बहादुर की बात मान गये। जब छछान परेशान होकर प्यास से तडपता हुआ घर वापस आया और मंा से पानी मंागा तो मंा ने उसे बताया कि आज घर पर पानी नहीं है तू खुद डोल लेकर कुंए से पानी ले आ। जब छछान डोल लेकर कुंएं पर गया तो बहादुर ने उसे पीछे से कुए में ढकेल कर मार दिया। और खुद अपने सीने मंे कटार भोंक ली। उसके बाद लोगो ने देखा कि कुएं में से एक पौधा उग आया है जिसमें रंग बिरंगी पत्तियों वाले फूल हैं। अलग अलग रंग के फूल नही, एक ही फूल में अलग अलग रंग की पत्तियां थी। इस अदभूत फूल को देखने के लिए जब जर्मनी से आए हुए कुछ पर्यटक चिरचारी गए तो एक वैज्ञानिक ने अपनी प्रयोगशाला में परीक्षण के लिए वो फूल तोड़ लिया। उसकी जंाच का तो कोई परिणाम न निकल सका कि ऐसे फुल भला किस तरह फूलते है और दूसरे किसी ओर पाए जाते है या नही। पर वह अजीबो गरीब फूलोवाला पौधा हमेशा के लिए मुरझा गया और लाख कोशिशों के बावजूद भी वह दूबारा न पनप सका। जो जो रंग उस फूल में थे, वे सब बहादुर के उन गहनों के रंग प्रदर्शित कर रहे थे जो उसने मरते वक्त पहन रखे थे। यह कथानक छत्तीसगढ़ की मिटटी में जन्मा और वहीं लोकपरंपरा के माध्यम से आज तक जन जन की जुबान पर विराजमान है। ऐसी अदभुत व भारतीय संस्कारों से भरी हुई कथा को हबीब तनवीर ने दुर्ग जिला के लोगो से सुना व हिंदी साहित्यकार बलदेव प्रसाद मिश्र जी की पुस्तक दुर्ग परिचय से पढा था उसका इम्प्रोवाइजेशन नया थियेटर के छत्तीसगढ़ी ग्रामीण कलाकारों ने किया। इस कथा की विशेषता है, इडिपस काम्प्लेक्स जैसी मनोवैज्ञानिक और नाजुक बात को कथा में बंाधना। कथानक की दृष्टि से बहादुर कलारिन एक सफल नाटक है जो अद्भूत, सत्य और छत्तीसगढी की उर्वर सांस्कृतिक भूमि से जन्मा है और जिसका पोषण हबीब तनवीर के सधे हुए हाथों से हुआ और छत्तीसगढ़ी लोक कलाकारों ने उसे सवांरा तथा दर्शकों का असीम प्रेम उसे प्राप्त हुआ।
बहादुर कलारिन शीर्षक से ही बहादुर पात्र की महत्ता का पता चलता है। बहादुर कलार अर्थात शराब बेचने वाली जाति की महिला है। वह केवल नाम की ही नहीं अपितु अपने कठिन जीवन में भी बहादुर रही है। बाल्यकाल उसने अकेले ही बिताया, माता-पिता, भाई बहन के नाम पर केवल अपने बडे पिता के सहारे। यौवन में उसे गंगरेल के राजा से प्रेम हो गया जिसे बहादुर ने अपना तनमन सौंप दिया व आजीवन उसकी ब्याहता बनकर उसकी प्रतीक्षा करती रही । अपने इकलौते पुत्र ‘‘छछान’’ का पालन पोषण भी उसने अकेले ही किया। वह मंा थी और पिता भी। उसने अपना पारंपरिक व्यवसाय भी स्वंय सम्भाला और इतनी सफलता से आय अर्जित की कि उसके पास सोने की मचौली थी और अपार धन संपदा थी। बहादुर सुंदर थी और अपने व्यवसाय की कला को बखूबी जानती थी इसलिए दूर दूर से लोग उसका सौंदर्य देखने और उसके हाथ की मदिरा पीने आते थे। यदि कोई उससे विवाह का प्रस्ताव रखता अथवा छछान से झगडा करता तो दोनो परिस्थितियों में वह ग्राहक के सम्मान की रक्षा करते हुए अपनी जिंदगी या अपने व्यवसाय में अंाच नही आने देती थी। इससे उसकी चतुराई और कौशल का पता चलता है।
वह बाहर से अपने आप को जितना कठोर दिखाती है अंदर से उतनी ही नरमदिल है। वह राजा के पुत्रों को देखकर अकेले में रोती है- पर उन पर अपार प्रेम लुटाती है। छछान के प्रति बहादुर का अंधा प्रेम ही उसकी बर्बादी का कारण बन जाता है। वह पुत्र प्रेम में उसकी सारी बातें मानती जाती है और अपने पुत्र की छःआगर छः कोरी (एक सौ छब्बीस) शादियां करा देती है। बहादुर का व्यक्तित्व रौबदार है इसलिए गंाव में इच्छा होते हुए भी कोई उसकी बात नहीं टाल पाता वह कर्म की पुजारिन है स्वयं कर्मठ है और अपनी बहुओं को भी यही शिक्षा देती है। वह कहती है। ‘‘देख बेटी, घर के बहू बेटी ला घर के कामेच ह शोभा देथे, कामेच हा डौकी जात के गहना होथे। जिनगी में उंच नीच , दुख सुख दोनो लगे हे, सुख दुख दूनों में कामेच ह औरत ला साथ देथे, अउ कोई नई देय। उही पायके मै तोला ये मूसर देथव.......येला गहना समझ बेटी अउ कोठी के धान निकाल के रोज बडे फजर ले धान कुटेबर लग जबे।’’ बहादुर पुत्रमोह मे स्त्रीसम्मान को भी ताक में रख देती है। उसका कथन तै ह इखर मन के बात में आके अपन लडकी ला नई देव काहथस ठीक हे मत दे ,पाव के राहत पनही के अकाल नई हे.........ए गंाव नहीं दूसर गंाव ले बहु ले लान हूं’’ किन्तु जब वह देखती है कि उसका पुत्र अपनी मंा पर ही आकर्षित है तो वह अपने बेटे को माफ नहीं करती और उसे मार डालती हैं। किंतु उसके बाद अपनी भी जान ले लेती है। पुत्रमोह में वह उसकी मंागे मानती जाती है, किंतु उसकी अनैतिक मंाग पर वह उसे सबक सीखाती है। होगे जग अंधियारा, राजा बेटा तोला का होगे कोख होगे उजार, चंदा बेटा तोला का होगे। कुआं में दियेव डार।। बहादुर का पात्र प्रमुख चरित्र है जिस पर आधारित यह नाटक है। बहादुर का चरित्र चित्रण इतना सटीक हुआ है कि उसके चरित्र का कोई भी पक्ष नहीं छूटा। अतः बहादुर कलारिन दृढनिश्चयी, चरित्रवान, परिश्रमी, ममतामयी, आदर्शो व नैतिकता का पालन करने वाली, कर्मठ, धैर्यवान स्त्री है जिसकी तुलना रजत पटल की आस्कर तक पहुचने वाली फिल्म ‘‘मदर इंडिया’’ से की जा सकती है जो आजीवन अपने संतान के पालन पोषण के लिए कष्ट सहती है व जुझती है किंतु अपनी उसी संतान की अनैतिक मंाग पर उसकी हत्या करने से भी पीछे नहीं हटती । यह भारतीय लोकपरंपरा, कूट कूटकर भरे हुए संस्कारों की अमर कहानी है जिसकी भूमिका बहादुर कलारिन के चरित्र के आस पास ही सृजित की गई ।
छछान नासमझ है इसलिए अपनी मन की भावनाओं का मर्म नही समझता और नैतिकता की कसौटी पर अपने विचारों को परख नहीं पाता। इसलिए वह अल्पायु में विवाह की जिद करता है और अपनी इच्छा से विवाह होने के बावजूद असंतुष्ट रहता है। वह 126 विवाह के बाद भी अपनी इच्छााओं को समझ नही पाता और समझकर उनका दमन शमन करने के बजाय अपनी मां के समक्ष उनका प्रदर्शन कर बैठता है व मां के हाथो मौत के घाट उतारा जाता है।
बहादुर कलारिन की कहानी पूर्णतः ग्रामीण अंचल पर आधारित है। जो छत्तीसगढ़ के गंाव के वातावरण पर रची गई है।
स्त्री मन को इस कथा में लोक गीतों के माध्यम से बडी मधुरता व ,सरसता से प्रस्तुत किया गया है इसकी बानगी देखिए ,
मन ला मिलाके चलदिस परदेस, भेजव ते भेजव मै काकर मेर संदेश बिन माली फुलवारी सुना होगे, फूल फूलते में दुःग उना दूना होगे। ताना रे हरी नाना ताना रे हरी नाना-3, नदिया किनारे मेरा कोदो का खेत छत्तीसगढ़ की ग्रामीण परिवेश के अनुसार भाषा बहुत आकर्षित करती है व मीठी लगती है। संबंोधन भी छत्तीसगढ़ी में है। जैस -राम राम दाउजी।। जय शंकर कुछ गीत पारंपरिक है जैसे बिहाव गीत। अउ देहू नवलखा हारे जोडी, अउ देहूं नवलखा, गाय अउ भइसी मर हरी जाही, मर हरी जाही टूट जही नवलखा हार जोडी, टूट जाही बंाह भर चूरी मंाग भर सेंदूर, बंाह भर चूड़ी। जनम जनम जुग जाही जोड़ी - इन गीतों की मदद से कथानक भी कहीं कहीं आगे बढाया गया, कहीं कहानी के नए पहलुओं को सामने लाया गया और कहीं विषय वस्तु के अंदर की परतों पर रोशनी डाली गई। कुछ गीत छत्तीसगढ़ी में इतने प्रसिध्द है कि अपनापन सा लगता है। जाबो धान कुटे ला या आगी लागे अइसन ससुराल जाबों ...... घड़ी गिनत दिन बीते रोवत बीते रात दीदी, देख हमर बैहा के जोडी के आगे राज बरात जाबो....
एक कठिन कथा केा हबीब तनवीर इतनी सुंदरता से मंच पर उतारते है कि दर्शक के हृदय तक वह बात बडी सरलता से सीधे पहुंच जाती है।
रंगमंचीयता की दृष्टि से दो परेशानियां थी जिसे बाद में स्वयं हबीब तनवीर ने हल कर लिया। पहली मुख्य समस्या थी मंा बेटे के आपस के यौन आकर्षण जैस नाजूक मसले को आखिर किस अंदाज में पेश किया जाए। अपने कलाकारों से चर्चा के दौरान हबीब को यह समझ आया कि ‘‘इडिपस कॉंप्लेक्स’’ जैसे मनोवैज्ञानिक बात जो पश्चिमी सभ्यता की देन मानी जाती है भारत के लिए भी नई नहीं है। वेदो में और शास्त्रों में तो ऐसी कहानियां मिलती है पर गंावों में भी ऐसी अफवाहें नई नही है। सच्चाई कुछ भी हो अगर लोगो की कल्पना में यह बात आती है तो आम आदमी इसे मंच पर देखकर आश्चर्यचकित नहीं होगा। और हुआ भी ऐसा ही। एक और सामाजिक मुद्दा यहॉं उठाया गया बहु विवाह का ,एक सौ छब्बीस शादियॉं। शादियों के होने और टूटने को भी इस कथा मे स्थान दिया गया है।इसका निचोड यह है कि शादी मे हमेशा वह पक्ष मजबूत रहता है जो आर्थिक और सामाजिक रूप से बडा होता है। बहादुर ने अपनी मेहनत से समाज में वह स्थान हासिल कर लिया था कि जल्दी से कोई उसकी बात काटने या उसके खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं करता था । एक महिला द्वारा ऐसी प्रस्थिति अर्जित करना स्त्री विमर्श में एक सराहनीय कार्य्र है। हबीब ने दो शादियॉं दिखाईं उसके बाद केवल अंतिम शादी को अच्छे से दिखाया । तो सारी शादिया एक ही मंच पर एक ही समय में एक के बाद एक दिखाने के लिए हबीब ने एक समूह का नृत्य दिखला दिया जिसमें छछान अपने घर की परछी में बहादुर के साथ खडा है। सारी लड़किया नाचती हुई एक-एक करके छछान के पास आकर खड़ी होती है। पति पत्नी की आरती उतारी जाती है, बहादुर हर एक बहू के हाथ में मूसल थमा देती है। लड़की मूसल लिए दूसरी तरफ से नाच में फिर शामिल हो जाती है। इस तरह नाच गाना भी चलता रहता है और एक के बाद एक शादी भी होती रहती है। आखिरी शादी में संवाद के माध्यम से यह सूचना दे दी जाती है कि अब तक एक सौ पच्चीस शादीयॉं हो चुकी है और अब एक सौ छब्बीसवी शादी है। मंच पर कई बार सामंतवादी दृश्टिकोण को स्पष्ट रूप से दिखाया गया है। इसके अलावा जो जो बातें बाकी रह गई थी उन्हे गानों के माध्यम से कहलवा दिया गया।
बहादुर कलारिन नाटक का उद्देश्य छत्तीसगढ़ क्षेत्र की लोककथाओं के समृध्द भंडार में से एक ऐसी कहानी को दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करना है जो अपने आप में अदभूत परंपरावादी होकर भी नवीन, और एक नई मर्यादा को स्थापित करने वाली है। भारत की भूमि भूल को क्षमा करने की शक्ति तो देती है पर स्त्री में विराजमान शक्ति अनैतिक और मर्यादाहीन विचार तक को माफ नही कर सकती। स्त्री में मातृत्व है तो दुराचारी को सजा देने की दृढता भी है चाहे वह उसका अपना पुत्र क्यों न हो। बहादुर के पात्र के माध्यम से एक ओर प्रेम की और पुत्रप्रेम की पराकाष्ठा दिखाई गई है तो दूसरी ओर मर्यादा की सीमा लांघने पर उसकी सजा भारतीय मानदण्डों के अनुसार कठोरतम् दिखाई गई है।
बहादुर एक चरित्रवान महिला है स्वयं वह एक ही पुरूष को समर्पित रही और अपने पुत्र को भी चरित्र की दृढता का पाठ पढाने उसकी इच्छानुसार सामाजिक मान्यता के अनुसार विवाह करने की छूट देती रही किंतु पुुत्र की धृष्टता जब हद पार कर के मंा पर ही कृदृष्टि डालने लगती है तो बहादुर अपने पुत्र को मार डालती है और स्वयं भी मर जाती है। इडिपस कॉंप्लेक्स को ठेठ छत्तीसगढी अंदाज में प्रस्तुत करके भारत को यूरोप और अन्य पाश्चात्य मान्यताओं और मनोवैज्ञानिक धारणाओं के समतुल्य स्थापित किया गया है। भारतीय मान्यताओं, सांस्कृतिक परंपराओं और सामाजिक सीमाओं को प्रस्तुत करने के साथ साथ इस लोककथा द्वारा स्त्री की आर्थिक व सामाजिक श्रेष्ठता को भी स्थापित किया गया है। इक्कीसवीं सदी में उपरोक्त समस्त विशेषताओं के साथ लोक गाथा बहादुर कलारिन प्रासंगिक व स्त्री विमर्श की एक प्रतिनिधि कथा है।
Traditionnal women’s craft : knitters, weaversEdit
Voguing / ball cultureEdit
- https://commons.wikimedia.org/wiki/Category:Voguing_Masquerade_B
- https://en.wikipedia.org/wiki/House_of_Aviance
- https://en.wikipedia.org/wiki/Mother_Juan_Aviance
- https://en.wikipedia.org/wiki/House_of_Xtravaganza
- https://en.wikipedia.org/wiki/Crystal_LaBeija https://en.wikipedia.org/wiki/Compton%27s_Cafeteria_riot
Toreras / Taurine BullfightingEdit
- Teresa Bolsi
- Conchita Cintrón
- Juanita Cruz
- Bette Ford
- Mari Fortes Roca[1]
- Angela Hernandez
- Blanca Inés Macías Monsalve (Rosarillo de Colombia)
- Raquel Martinez
- Patricia McCormick
- Cristina Sánchez
- Marie Sara
- Hilda Tenorio
- Alicia Tomás
- Conchi Ríos
- Léa Vicens
BalsEdit
TV shows / Séries TV /filmsEdit
Some Platforms Which is Provide you TV Series or Web Series Shows Such likes Following - 1.Alt Balaji 2.Hulu Original 3.Ullu TV 4.Netflix
Graffiti / Street artsEdit
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Fairs / KermessesEdit
danse bretonnes festnose
Culinary traditions / GastronomieEdit
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# Femmes cheffes avec beaucoup de lien de site sans article sur la Wikipédia en anglaisEdit
Article | description | Place | start time | end time | coordinate location | image |
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Adriana Urbina | Colombia chef (*1901) ♀ | |||||
Ai Hosokawa | Japanese chef | |||||
Amélie Darvas | French chef (*1989) ♀; Michelin star | |||||
Andrea Romero Rojas | Mexican chef (1953–2017) ♀ | |||||
Angélique Schmeinck | Dutch chef | |||||
Anis Nabilah | Malaysian chef | |||||
Anna Starmach | chef and television personality (*1987) ♀ | |||||
Arabelle Meirlaen | Belgian chef | |||||
Babette de Rozières | French television presenter and chef | |||||
Carla Pernambuco | Brazilian chef and restaurateur (*1959) ♀ | |||||
Chiho Kanzaki | Japanese chef (*1979) ♀; Michelin star | |||||
Choly Berreteaga | Argentinian chef, television presenter, writer | |||||
Élisa Blanc | chef from France | |||||
Eva Dahlman | Swedish chef and muse (*1947) ♀ | |||||
Fabienne Eymard | French chef ♀ | |||||
Fanny Rey | French chef (*1981) ♀; Michelin star | |||||
Françoise Fayolle | French chef (1865-1925) | |||||
Françoise Mutel | French chef (*1952) ♀; Michelin star | |||||
Heaven Delhaye | Brazilian chef | |||||
Ida Kleijnen | Kingdom of the Netherlands chef (1936–2019) ♀; Michelin star | |||||
Isabelle Arpin | French chef based in Belgium | |||||
Janie Quinn | American chef | |||||
Jennie Walldén | chef | |||||
Julia Sedefdjian | French chef (*1994) ♀; Michelin star | |||||
Karina Laval | Mauritius Island chef and pastry chef ♀ | |||||
Kille Enna | Danish chef and cookbook author | |||||
Kirane Grover Gupta | chef (*1957) ♀; Chevalier des Arts et des Lettres | |||||
Laetitia Cosnier | French chef (*1978) ♀; Michelin star | |||||
Lucía Josefina Sánchez Quintana | mexican chef | |||||
Lydia Egloff | French chef (*1956) ♀; Michelin star | |||||
Lydia Glacé | Belgian chef and restaurateur ♀; Michelin star | |||||
Maija Silvennoinen | Finnish chef, writer, and journalist (*1961) ♀ | |||||
Maria Remei Hofmann i Roldós | cook and chef (1946–2016) ♀; Michelin star | |||||
Marie Rougier-Salvat | French chef (*1948) ♀ | |||||
Mi-Ra Kim | French-south korea chef (*1975) ♀; Michelin star | |||||
Miyuki Igarashi | Japanese chef (*1974) ♀ | |||||
Mónica Patiño | Mexican chef | |||||
Monika Borková | Czech traveller | |||||
Naoëlle d’Hainaut | French chef (*1983) ♀; Michelin star | |||||
Narda Lepes | Argentinian television presenter | |||||
Nicole Fagegaltier | French chef (*1963) ♀; Michelin star | |||||
Nolwenn Corre | French chef (*1990) ♀; Michelin star | |||||
Reine Sammut | French chef (*1953) ♀; Michelin star | |||||
Ricarda Grommes | Belgian chef and restaurateur ♀; Michelin star | |||||
Rougui Dia | French chef | |||||
Siri Barje | Swedish chef, cookery writer, and TV-kock (*1988) ♀ | |||||
Sofie Dumont | Belgian chef | |||||
Stéphanie Le Quellec | French chef (*1981) ♀; Michelin star and Michelin star | |||||
Stéphanie Thunus | Belgian chef and restaurateur ♀; Michelin star | |||||
Virginia Demaria | Chilean chef | |||||
Virginie Giboire | French chef (*1982) ♀; Michelin star | |||||
Εύη Βουτσινά | Greek chef and writer (1950–2013) ♀ | |||||
רותי רוסו | journalist, chef, and television presenter ♀; child of Nira Ruso | |||||
ديما حجاوي | Jordanian chef and writer (*1977) ♀ | |||||
青山有紀 | Japanese chef |
Goddesses by CultureEdit
Important Intangible Folk Cultural PropertiesEdit
Indian and asian topicsEdit
https://en.wikipedia.org/wiki/Category:Folk_dancers |
https://en.wikipedia.org/wiki/Category:Goddesses_by_culture |
https://en.wikipedia.org/wiki/Witch-hunt |
https://en.wikipedia.org/wiki/European_witchcraft |
https://en.wikipedia.org/wiki/Folk_healer |
https://en.wikipedia.org/wiki/Folk_music |
https://en.wikipedia.org/wiki/Category:Witch_hunting |
https://en.wikipedia.org/wiki/Category:Witch_trials |
https://en.wikipedia.org/wiki/Drag_(clothing)#In_folk_custom |
https://en.wikipedia.org/wiki/Category:Early_Modern_witch_hunts |
https://en.wikipedia.org/wiki/Slavic_paganism |
https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_women_warriors_in_folklore |
https://en.wikipedia.org/wiki/Folk_music |
Folk SingersEdit
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